wholesale inflation

जून,2024 में थोक महंगाई (Whole Sale Inflation ) 3.36% पर पहुंची खाने-पीने की चीजें महंगी हुईं, साबुन-तेल जैसे डेली यूज के सामानों के दाम भी बढ़े

Whole sale inflation महंगाई की मार हर किसी के लिए सिरदर्द बन गयी है,अमीरों को कोई फर्क नहीं पड़ता ,पर मध्यवर्गीय और गरीब तबके को सबसे ज्यादा फरक पड़ता है,नए आकड़ोके अनुसार जून,2024 में थोक महंगाई बढ़कर 16 महीनों के ऊपरी स्तर पर पहुंच गई है। आज 15 जुलाई,2024 को जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, जून में थोक महंगाई बढ़कर 3.36% पर पहुंच गई है। फरवरी 2023 में थोक महंगाई दर 3.85% रही थी।

वहीं, मई,2024 में थोक महंगाई बढ़कर 15 महीनों के ऊपरी स्तर 2.61% पर थी। इससे पहले अप्रैल 2024 में महंगाई 1.26% रही थी, जो 13 महीने का उच्चतम स्तर था। उधर, शुक्रवार को रिटेल महंगाई में भी तेजी देखने को मिली थी।

  • जून,2024 में खाद्य महंगाई दर 1.28% बढ़ी
  • खाद्य महंगाई दर मई के मुकाबले 7.40% से बढ़कर 8.68% हो गई।
  • रोजाना की जरूरत वाले सामानों की महंगाई दर 7.20% से बढ़कर 8.80% हो गई।
  • फ्यूल और पावर की थोक महंगाई दर 1.35% से घटकर 1.03% रही।
  • मैन्युफैक्चरिंग प्रोडक्ट्स की थोक महंगाई दर 0.78% से बढ़कर 1.43% रही।

थोक महंगाई के लंबे समय तक बढ़े रहने से ज्यादातर प्रोडक्टिव सेक्टर पर इसका बुरा असर पड़ता है। अगर थोक मूल्य बहुत ज्यादा समय तक ऊंचे स्तर पर रहता है, तो प्रोड्यूसर इसका बोझ कंज्यूमर्स पर डाल देते हैं। सरकार केवल टैक्स के जरिए WPI को कंट्रोल कर सकती है।

जैसे कच्चे तेल में तेज बढ़ोतरी की स्थिति में सरकार ने ईंधन पर एक्साइज ड्यूटी कटौती की थी। हालांकि, सरकार टैक्स कटौती एक सीमा में ही कम कर सकती है। WPI में ज्यादा वेटेज मेटल, केमिकल, प्लास्टिक, रबर जैसे फैक्ट्री से जुड़े सामानों का होता है।

महंगाई कैसे मापी जाती है?
भारत में दो तरह की महंगाई होती है। एक रिटेल, यानी खुदरा और दूसरी थोक महंगाई होती है। रिटेल महंगाई दर आम ग्राहकों की तरफ से दी जाने वाली कीमतों पर आधारित होती है। इसको कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI- Consumer Price Index) भी कहते हैं। वहीं, होलसेल प्राइस इंडेक्स (WPI-Wholesale Price index)) का अर्थ उन कीमतों से होता है, जो थोक बाजार में एक कारोबारी दूसरे कारोबारी से वसूलता है।

महंगाई मापने के लिए अलग-अलग आइटम्स को शामिल किया जाता है। जैसे थोक महंगाई में मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स की हिस्सेदारी 63.75%, प्राइमरी आर्टिकल जैसे फूड 20.02% और फ्यूल एंड पावर 14.23% होती है। वहीं, रिटेल महंगाई में फूड और प्रोडक्ट की भागीदारी 45.86%, हाउसिंग की 10.07% और फ्यूल सहित अन्य आइटम्स की भी भागीदारी होती है।

जून में रिटेल महंगाई बढ़कर 5.08% पर पहुंच गई
जून में रिटेल महंगाई बढ़कर 5.08% पर पहुंच गई है। यह महंगाई का 4 महीने का उच्चतम स्तर है। अप्रैल में महंगाई 4.85% रही थी। वहीं एक महीने पहले मई में महंगाई 4.75% रही थी। नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस ने शुक्रवार, 12 जुलाई को ये आंकड़े जारी किए।

खाने-पीने का सामान महंगा होने से महंगाई बढ़ी है। खाद्य महंगाई दर 8.69 से बढ़कर 9.36% हो गई है। वहीं शहरी महंगाई भी महीने-दर-महीने आधार पर 4.21% से बढ़कर 4.39% पर आ गई है। ग्रामीण महंगाई दर भी 5.34% से बढ़कर 5.66% पर पहुंच गई है।

रिटेल महंगाई में भी हुआ था इजाफा

देश की जनता को महंगाई का लगातार ये दूसरा झटका लगा है । इससे पहले सरकार की ओर से रिटेल महंगाई (Retail Inflation) के आंकड़े जारी किए गए थे, जो भी थोक महंगाई की तरह ही बढ़े थे। बीते 12 कम नजर आ रही है. बता दें कि केंद्रीय बैंक ने Repo Rate को 6.5 फीसदी पर स्थिर रखा है।  जुलाई को वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों पर नजर डालें, तो CPI जून में 5.1 फीसदी पर पहुंच गई और ये इसके चार महीने का हाई है ।

क्या आरबीआई (RBI)घटाएगा रेपो रेट? 

महंगाई दर (Inflation Rate) के आंकड़ों को ध्यान में रखकर ही भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) रेपो रेट पर फैसला लेता है। अब जबकि रिटेल और थोक दोनों महंगाई दरों में इजाफा देखने को मिल रहा है, तो ऐसे में अगस्‍त में होने वाली RBI MPC Meeting में पॉलिसी रेट में कटौती की संभावना कम है ।

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